कपड़ों-इमारतों के अलावा बर्तनों पर भी होती है कारीगरी...जानें नक्कासी का इतिहास

16 APRIL 2025

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छेनी और हथौड़ी की मदद से मेटल के बर्तन पर जान डाल देने की कला को नक्काशी कहते हैं.

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आपने कपड़ों और इमारतों पर तो कारीगरों की कलाकारी जरूर देखी होगी. लेकिन, आपने शायद ही कपड़े और इमारतों के अलावा बर्तनों पर कारीगरी देखी है.

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लखनऊ के पूरे शहर में नक्काशी का काम सिर्फ याहियागंज में किया जाता है. यहां के कलाकारों का कहना है कि इस कला में वे इतने निपुण हैं कि आंख बंद कर के भी ये डिजाइन आसानी  से बना सकते हैं.

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यूं तो लखनऊ अपने Art, Poetry और Craftsmanship के लिए जाना जाता है और नक्काशी भी इसी का हिस्सा है.

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नवाबों के समय से नक्काशी की काफी धूम रही है, लेकिन समय के साथ नक्काशी के कारीगरों की पहचान कम होने लगी है.  

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अब ये नक्काशी कला लखनऊ के याहियागंज के कुछ दुकानों तक ही सीमित रह गई है. 

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नक्काशी की कला, जो साधारण धातु के टुकड़ों में जान फूंक देती है, लखनऊ की समृद्ध कलात्मक विरासत का प्रमाण है.

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याहियागंज की चहल-पहल भरी गलियों में, कुशल कारीगर छेनी और हथौड़े से लैस होकर, हाथ से पैटर्न उकेरने में घंटों बिताते हैं. 

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कभी शाही पसंदीदा रही नक्काशी अब मशीन से हो रही डिजाइन के आगे विलुप्त हो रही है.

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फिर भी, हाथ से उकेरी गई हर चीज़ में, यह लखनऊ की आत्मा को बचाए रखती है, जो उनकी विरासत को जीवित रखती है. 

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