बिना जोड़ के बनाई जाती हैं मूर्तियां...जानें बस्तर का ढोकरा आर्ट क्यों है खास

03 June 2025

Credit: META AI

छत्तीसगढ़ का ढोकरा आर्ट दुनियाभर में प्रसिद्ध है, इस कला को खासकर बस्तर और रायगढ़ जिलों में बनाया जाता है.

इसे "बेल मेटल क्राफ्ट" भी कहा जाता है और यह कला आदिवासी समुदायों की पारंपरिक कला का एक रूप है.

ढोकरा आर्ट में पीतल, तांबा और कांस्य जैसी धातुओं का उपयोग किया जाता है और  मोम तकनीक का उपयोग करके मूर्तियां और अन्य कलाकृतियां बनाई जाती हैं. 

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ और बंगाल में बेल-धातु से बनने वाली इन मूर्तियों में कोई जोड़ नहीं होता. 

इसे छत्तीसगढ़ की शान कहा जाता है. बस्तर में बनाए जाने वाले ढोकरा आर्ट की मूर्तियों की डिमांड देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. 

ढोकरा आर्ट में मूर्तियां, सजावटी वस्तुएं, और दैनिक उपयोग की वस्तुएं शामिल हैं.  इस कला में देवी-देवताओं, जानवरों, और दैनिक जीवन से जुड़े पात्रों की मूर्तियां बनाईं जाती हैं.

अधिकांश आदिवासी शिल्पकारों की रोजी-रोटी ढोकरा आर्ट पर निर्भर हैं. इस कला से बनी मूर्ति ऐसी लगती है जैसे जीवित हो.

ढोकरा आर्ट की एक मूर्ति बनाने के लिए सबसे पहले मिट्टी से ढांचा तैयार किया जाता है और काली मिट्टी को भूसे के साथ मिलाकर बेस बनाया जाता है. मिट्टी के सूख जाने लाल मिट्टी की लेप लगाई जाती है. लाल मिट्टी से लेप लगाने के बाद उसपर मोम का लेप लगाते हैं. 

जब मोम सूख जाता है तब मोम के पतले धागे से बारीक डिजाइन बनाई जाती है. इसके बाद मूर्ति को मिट्टी से ढक देते हैं. मिट्टी से कई बार ढ़कने के बाद इसे धूप में सुखाया जाता है.

दो-तीन बार मिट्टी से कवर करने के पीतल, टिन, तांबे जैसी धातुओं को पहले हजार डिग्री सेल्सियस पर पिघलाया जाता है. इसी तरह कई प्रोसेस के बाद बस्तर की फेमस ढोकरा आर्ट बनाई जाती है.