धान की खेती को लेकर किसान ही नहीं सरकार भी चिंतित है. घटते जल स्तर को देखते हुए धान की परंपरागत खेती अब चिंता का विषय बनती जा रही है.
दुनिया में कई ऐसी तकनीकें विकसित की जा चुकी हैं, जिनसे किसान कम पानी में भी धान की खेती कर सकते हैं.
ऐसी ही एक तकनीक का इस्तेमाल करके मिसाल कायम की थी जापान के मसानोबु फुकुओका ने.
उन्होंने सूखी जमीन पर धान की खेती करके दुनिया भर में चर्चा बटोरी. इतना ही नहीं मसानोबू धान की खेती में न तो कीटनाशकों का इस्तेमाल करते थे और न ही बुवाई से पहले खेत की जुताई करते थे.
मसानोबू पारंपरिक तकनीक से ज्यादा जापानी तकनीक की मदद से चावल का उत्पादन करते थे. भारत के किसान भी इस तकनीक की मदद से कम पानी में धान की खेती कर सकते हैं.
मसानोबू ने अपनी 'द वन-स्ट्रॉ रेवोल्यूशन' में लिखा है कि जब वे खेती करते थे तो अगस्त के महीने में उनके पड़ोसी के खेत में लगे चावल के पौधे की ऊंचाई उनकी कमर या उससे भी ऊपर पहुंच जाती थी.
जबकि उनके खेत में लगे धान की ऊंचाई करीब आधी ही थी. इससे परेशान होने के बजाय वह खुश थे क्योंकि वह जानते थे कि कम ऊंचाई का पौधा दूसरे पौधों के बराबर या अधिक उपज देगा.
मसानोबू के मुताबिक अगर आप धान के पौधे को सूखे खेत में उगाते हैं तो वह ज्यादा लंबा नहीं होता है. कम ऊंचाई का फायदा मिलता है. इससे सूर्य का प्रकाश पौधे के प्रत्येक भाग पर पड़ता है. सूर्य का प्रकाश पत्तियों से पौधे की जड़ों तक जाता है.
मसानोबू बीज को थोड़ा गहरा बोते थे ताकि 1 वर्ग गज में लगभग 20 से 25 पौधे उग सकें. इनसे करीब 250 से 300 दाने पैदा होते हैं.
मसानोबू तकनीक के मुताबिक बिना पानी चावल की खेती करने से जड़ें मजबूत होती हैं. जिससे पौधों में कीटों के प्रकोप की संभावना कम होती है.
मसानोबू खेतों में धान की बुवाई से 1 हफ्ता पहले खेतों में पानी को जाने से रोक लेते थे. इसका मुख्य कारण यह था कि खेती में पानी की कमी की वजह से खरपतवार मर जाते थे. इसका फायदा यह मिलता था कि इससे फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचता था.
मसानोबू मौसम के शुरुआत में खेतों की सिंचाई नहीं करते थे. अगस्त के महीने में वो फसलों की सिंचाई करते थे. खेतों में पानी ना लगे इसका भी ध्यान रखा जाता था.